ای عمــو پــاره پــاره شــد بدنم |
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زرهــم گشتــه زخــمهــای تنم |
منـــم آن یــوسفـی کـه گردیده |
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بــدنـم پـــارهتـــر ز پیـــرهنم |
سیـــــزده ســـــــال آرزو دارم |
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روی دست تــو دست و پـا بـزنم |
از دم تیــــغ دوست خــوردم آب |
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کـه عسـل جــاری اسـت از دهنم |
عـــاشقـم عاشقـم عمـــو بگـذار |
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اسبهـا پـــا نهنـــد بــر بـدنم |
بس که خشکیده از عطـش دهنم |
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نیـست یــــارای گفتـــنِ سخنم |
آرزوی مــــن از ازل ایــن بـــود |
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که شود زخم و خاک و خون، کفنم |
پـدری کـن بــر ایــن یتیــم عمو |
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من عــزیـــز بــــرادرت حسنـم |
شهـد احلـی مـن العسل خـوردم |
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به! چـه زیباست دست و پـا زدنم! |
«میثم» از سوز دل بسوز به من |
من گـل بـرگ بــرگ در چمنم |
دو دریا اشک 1- غلامرضا سازگار